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पश्चिमी चालुक्य (543 – 755 ई.) |
परिचय
पश्चिमी चालुक्य एक प्रमुख भारतीय राजवंश थे जिन्होंने लगभग दो शताब्दियों तक दक्कन क्षेत्र के एक महत्वपूर्ण हिस्से पर शासन किया। उनके शासनकाल को महान सांस्कृतिक और आर्थिक समृद्धि के दौर के रूप में चिह्नित किया गया था।
पश्चिमी चालुक्य (543 – 755 ई.)
पुलकेशिन प्रथम को चालुक्य वंश की स्थापना का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने वातापी (बादामी के नाम से भी जाना जाता है) को अपनी राजधानी बनाकर एक छोटा सा राज्य स्थापित किया। समय के साथ, चालुक्यों ने रणनीतिक गठबंधनों और सैन्य विजय के माध्यम से अपने क्षेत्र का विस्तार किया।
चालुक्य काल के दौरान एक उल्लेखनीय विकास राजवंश की शाखाओं का उदय था। पूर्वी चालुक्यों ने वेंगी में अपना राज्य स्थापित किया, जबकि कल्याणी के चालुक्यों ने एक अलग क्षेत्र पर शासन किया। चालुक्य परिवार की इन शाखाओं ने दक्षिण भारत के राजनीतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रभुत्व की एक अवधि के बाद, पश्चिमी चालुक्यों को अंततः राष्ट्रकूटों द्वारा हटा दिया गया। राष्ट्रकूट शक्तिशाली हो गए और उन्होंने काफी समय तक दक्कन पर शासन किया, जिससे इस क्षेत्र में मजबूत और प्रभावशाली राजवंशों की विरासत जारी रही।
चालुक्य वंश के प्रमुख बिन्दु
स्थापना: चालुक्य वंश की स्थापना पुलकेशिन प्रथम ने की थी।
राजधानी: वातापी (बादामी) पश्चिमी चालुक्य साम्राज्य की राजधानी थी।
विस्तार: चालुक्यों ने रणनीतिक गठबंधनों और सैन्य विजयों के माध्यम से अपने क्षेत्र का विस्तार किया।
शाखाएँ: पूर्वी चालुक्य और कल्याणी के चालुक्य, पश्चिमी चालुक्य वंश की महत्वपूर्ण शाखाएँ थीं।
उत्तराधिकार: राष्ट्रकूटों ने अंततः पश्चिमी चालुक्यों के बाद दक्कन में प्रमुख शक्ति के रूप में शासन किया।
निष्कर्ष
पश्चिमी चालुक्यों ने लगभग दो शताब्दियों तक दक्कन के एक बड़े क्षेत्र पर शासन किया जिसके बाद राष्ट्रकूट शक्तिशाली हो गए। पश्चिमी चालुक्यों के परिवार की अपनी शाखाएँ थीं जैसे वेंगी के पूर्वी चालुक्य और कल्याणी के चालुक्य।
पुलकेशिन प्रथम चालुक्य वंश का संस्थापक था। उसने वातापी या बादामी को अपनी राजधानी बनाकर एक छोटा सा राज्य स्थापित किया।