कनिष्क (78 – 120 ई.)

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कुषाण राजवंश: कनिष्क (78 – 120 ई.)



कनिष्क (78 – 120 ई.)

कनिष्क, जिन्होंने 78 से 120 ई. तक शासन किया, कुषाण वंश के सबसे महत्वपूर्ण शासक माने जाते हैं। उनके शासनकाल में विजय अभियान, धर्म और कला का संरक्षण और शक युग की स्थापना की गई।



शक युग

कनिष्क को शक संवत की स्थापना का श्रेय दिया जाता है, जो भारत में व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली कैलेंडर प्रणाली है। शक संवत की शुरुआत 78 ई. में होती है, जो कनिष्क के राजसिंहासन पर बैठने के वर्ष से मेल खाता है।



विजय और विस्तार

कनिष्क एक दुर्जेय सैन्य नेता थे जिन्होंने कुषाण साम्राज्य का काफी विस्तार किया। उन्होंने चीन और अफ़गानिस्तान के कुछ हिस्सों सहित मध्य एशिया के क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की। उनकी सैन्य शक्ति और रणनीतिक कौशल ने कुषाण राजवंश की स्थिति को क्षेत्र में एक प्रमुख शक्ति के रूप में मजबूत किया।



धर्म और कला का संरक्षण

कनिष्क एक कट्टर बौद्ध थे और उन्होंने बौद्ध धर्म के विकास और प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने पेशावर में चौथी बौद्ध परिषद का आयोजन किया, जिसमें बौद्ध शिक्षाओं को संहिताबद्ध किया गया और धर्म के विस्तार को बढ़ावा दिया गया। कनिष्क ने बौद्ध धर्म को कला और वास्तुकला तक भी संरक्षण दिया। उन्होंने प्रसिद्ध गांधार स्तूप सहित कई बौद्ध स्तूपों और मठों के निर्माण का समर्थन किया।



निष्कर्ष 

कनिष्क का शासनकाल कुषाण राजवंश के इतिहास में स्वर्ण युग का प्रतिनिधित्व करता है। उनकी सैन्य विजय, बौद्ध धर्म का संरक्षण और शक युग की स्थापना ने इस क्षेत्र पर एक स्थायी विरासत छोड़ी। कनिष्क के शासन के तहत कुषाण साम्राज्य सांस्कृतिक आदान-प्रदान और बौद्धिक गतिविधि का केंद्र था, जिसने कला, साहित्य और दर्शन के विकास को बढ़ावा दिया।



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