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मौर्य सेना: एक सुव्यवस्थित सैन्य बल |
परिचय
मौर्य साम्राज्य, जो अपने कुशल प्रशासन के लिए जाना जाता था, के पास एक दुर्जेय सेना भी थी जिसने इसके विस्तार और शक्ति के समेकन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सेना सेनापति, एक उच्च पदस्थ सैन्य अधिकारी के अधीन थी, और अपने अनुशासन, संगठन और प्रभावशीलता के लिए प्रसिद्ध थी।
मौर्य सेना: एक सुव्यवस्थित सैन्य बल
वेतन संरचना
नकद भुगतान: प्राचीन भारत में मौर्य सेना अपने सैनिकों को नकद में वेतन देने वाली पहली सेना थी। इस प्रथा से नियमित और उचित मुआवज़ा मिलता था, जिससे मनोबल और वफ़ादारी बढ़ती थी।
रैंक-आधारित वेतन: प्रसिद्ध राजनीतिक सिद्धांतकार कौटिल्य ने सेना के पदानुक्रमिक ढांचे को दर्शाते हुए विभिन्न रैंक के सैन्य अधिकारियों के वेतन के बारे में विवरण प्रदान किया है।
सेना की संरचना
पैदल सेना: यूनानी लेखक प्लिनी के अनुसार मौर्य सेना की रीढ़ पैदल सेना थी, जिसमें छह लाख सैनिकों का विशाल बल शामिल था।
घुड़सवार सेना: घुड़सवार सेना एक और महत्वपूर्ण घटक थी, जिसकी संख्या लगभग तीस हज़ार थी। घुड़सवार इकाइयाँ अत्यधिक गतिशील और युद्ध में प्रभावी थीं।
हाथी: मौर्य युद्ध में हाथियों ने हथियार और शक्ति के प्रतीक के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सेना में नौ हज़ार हाथियों की एक दुर्जेय सेना थी।
रथ: मौर्य सेना का एक अन्य महत्वपूर्ण अंग रथ था, उनके पास आठ हजार रथ थे।
संगठनात्मक संरचना
सेना के अंग: मौर्य सेना छह अंगों में विभाजित थी, जिनमें से प्रत्येक एक अध्यक्ष या अधीक्षक के नियंत्रण में था। इन अंगों में पैदल सेना, घुड़सवार सेना, हाथी, रथ, नौसेना और परिवहन और आपूर्ति शामिल थे।
प्रशासनिक बोर्ड: मेगस्थनीज़ ने पांच-पांच सदस्यों वाले छह बोर्डों का उल्लेख किया है, जो सेना के छह अंगों के प्रशासन और संचालन की देखरेख के लिए जिम्मेदार थे।
निष्कर्ष
मौर्य सेना एक सुव्यवस्थित और दुर्जेय सैन्य बल थी जिसने साम्राज्य के विस्तार और शक्ति के समेकन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कुशल प्रशासन, अनुशासित सैनिक और उन्नत सैन्य तकनीक ने मौर्य सेना की सफलता में योगदान दिया। सैन्य उत्कृष्टता की यह विरासत बाद के भारतीय साम्राज्यों और सैन्य परंपराओं को प्रभावित करती रही।