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पल्लवों के अधीन समाज: परिवर्तन का काल |
पल्लवों के अधीन समाज: परिवर्तन का काल
पल्लव काल में तमिल समाज में महत्वपूर्ण सामाजिक और धार्मिक परिवर्तन हुए। इस समय जाति व्यवस्था और भी कठोर हो गई, जिसमें ब्राह्मणों को विशेषाधिकार प्राप्त स्थिति प्राप्त हो गई। राजाओं और कुलीनों द्वारा उन्हें भूमि प्रदान की गई और मंदिरों के प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंपी गई।
शैव और वैष्णव धर्म का उदय पल्लव समाज की एक परिभाषित विशेषता थी। जबकि बौद्ध धर्म और जैन धर्म का प्रभाव कम हो गया, भक्ति आंदोलन, जो भक्ति और धार्मिक उत्साह की विशेषता थी, ने गति पकड़ी। शैव नयनमार और वैष्णव अलवर, प्रसिद्ध कवि और संत, ने अपने तमिल भजनों के माध्यम से शैव और वैष्णव धर्म को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन भजनों ने भक्ति के महत्व पर जोर दिया और इन धर्मों की व्यापक लोकप्रियता में योगदान दिया।
पल्लव राजाओं द्वारा बनाए गए अनेक मंदिरों ने शैव और वैष्णव धर्म के प्रसार में और सहायता की। ये भव्य मंदिर पूजा और सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में कार्य करते थे, भक्तों को आकर्षित करते थे और धार्मिक विश्वासों को बढ़ावा देते थे।
निष्कर्ष रूप में, पल्लव काल में महत्वपूर्ण सामाजिक और धार्मिक परिवर्तन हुए। जाति व्यवस्था का उदय, ब्राह्मणों की प्रमुखता और शैव और वैष्णव धर्म का विकास इस युग की परिभाषित विशेषताएँ थीं। भक्ति आंदोलन और मंदिरों के निर्माण ने तमिलनाडु के धार्मिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।