तिब्बत पर भारत का प्रभाव

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तिब्बत पर भारत का प्रभाव


परिचय 

तिब्बत पर भारत का सांस्कृतिक और धार्मिक प्रभाव बहुत गहरा था, खास तौर पर सातवीं शताब्दी की शुरुआत में। तिब्बती राजा सोंगत्सेन गम्पो, जो एक प्रसिद्ध बौद्ध व्यक्ति थे, ने तिब्बत में बौद्ध धर्म को लाने और ल्हासा शहर की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।



भारतीय विद्वान और तिब्बती संस्कृति

भारतीय विद्वानों ने तिब्बती संस्कृति के विकास में अमूल्य सहायता प्रदान की। उन्होंने तिब्बती वर्णमाला तैयार करने में मदद की, जो तिब्बती भाषा और साहित्य को संरक्षित करने और प्रसारित करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है। इसके अलावा, भारतीय विद्वानों ने लामावाद की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जो बौद्ध धर्म का एक अनूठा रूप है जो तिब्बत में प्रमुख धर्म बन गया।



पाल राजवंश के साथ घनिष्ठ संबंध

ग्यारहवीं शताब्दी में बंगाल के पाल राजवंश ने तिब्बत के साथ घनिष्ठ संपर्क बनाए रखा। इस संबंध ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया और दोनों क्षेत्रों के बीच संबंधों को मजबूत किया। जब बंगाल पर मुस्लिम शासकों के हमले हुए, तो कई बौद्ध भिक्षुओं ने तिब्बत में शरण ली, जिससे तिब्बती संस्कृति भारतीय प्रभावों से और समृद्ध हुई।



स्थायी प्रभाव

तिब्बती संस्कृति पर भारत का स्थायी प्रभाव तिब्बती जीवन के विभिन्न पहलुओं, धर्म और दर्शन से लेकर भाषा और साहित्य तक में स्पष्ट है। उदाहरण के लिए, तिब्बती भाषा में कई संस्कृत शब्द और व्याकरणिक संरचनाएँ शामिल हैं, जो भारतीय संस्कृति के गहरे प्रभाव को दर्शाती हैं। इसके अलावा, बौद्ध धर्म की एक प्रमुख शाखा, तिब्बती बौद्ध धर्म, भारतीय बौद्ध परंपराओं और प्रथाओं से काफी प्रभावित है।



निष्कर्ष

तिब्बत पर भारत का सांस्कृतिक और धार्मिक प्रभाव बहुत गहरा था, खास तौर पर बौद्ध धर्म के आगमन और भारतीय विद्वानों की सहायता के कारण। तिब्बत और पाल राजवंश के बीच घनिष्ठ संबंधों ने इन संबंधों को और मजबूत किया। तिब्बती संस्कृति पर भारत का स्थायी प्रभाव तिब्बती जीवन के विभिन्न पहलुओं, धर्म और भाषा से लेकर साहित्य तक में स्पष्ट है।



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