सातवाहन

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सातवाहन



परिचय 

सातवाहन, जिन्हें आंध्र के नाम से भी जाना जाता है, मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद भारत के दक्कन क्षेत्र में एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभरे। उनका शासन लगभग 450 वर्षों तक चला, जिसके दौरान उन्होंने एक महत्वपूर्ण और समृद्ध साम्राज्य की स्थापना की।



सातवाहन

ऐतिहासिक स्रोत

पुराण, प्राचीन पौराणिक ग्रंथ और शिलालेख सातवाहनों के इतिहास के बारे में बहुमूल्य जानकारी देते हैं। नासिक और नानागढ़ शिलालेख, विशेष रूप से, गौतमीपुत्र सातकर्णी के शासनकाल पर प्रकाश डालते हैं, जो राजवंश के सबसे प्रमुख शासकों में से एक थे। इसके अतिरिक्त, सातवाहनों द्वारा जारी किए गए सिक्के उस काल की आर्थिक स्थितियों के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करते हैं।



सातवाहनों का उदय 

सातवाहन वंश के संस्थापक सिमुक ने राज्य की नींव रखी। उनके उत्तराधिकारी कृष्ण ने पश्चिम की ओर क्षेत्र का विस्तार किया और नासिक तक पहुँच गए। तीसरे राजा श्री सातकर्णी ने पश्चिमी मालवा और बरार पर विजय प्राप्त करके और अश्वमेध यज्ञ करके साम्राज्य का और विस्तार किया।



हला और गाथासप्तशती

सातवाहनों के सत्रहवें राजा हला अपने साहित्यिक योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी पुस्तक गाथासप्तशती, जिसे सत्तासई के नाम से भी जाना जाता है, प्राकृत भाषा में 700 छंदों का संग्रह है। यह कृति सातवाहन काल की संस्कृति और समाज की झलक प्रदान करती है।



गौतमीपुत्र शातकर्णी

महानतम शासक: गौतमीपुत्र सातकर्णी को सातवाहन वंश का महानतम शासक माना जाता है। 24 साल (106-130 ई.) के उनके शासनकाल में उल्लेखनीय उपलब्धियाँ रहीं। उन्होंने पूरे दक्कन क्षेत्र पर विजय प्राप्त की और साम्राज्य के प्रभाव का विस्तार किया। मालवा के शासक नागपना पर उनकी जीत एक बड़ी उपलब्धि थी। ब्राह्मणवाद के संरक्षण के बावजूद, उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता का प्रदर्शन करते हुए बौद्ध संस्थानों को दान भी दिया।



नौसेना शक्ति और समुद्री व्यापार

गौतमीपुत्र शातकर्णी के पुत्र वशिष्ठपुत्र पुलामयी ने सातवाहन शक्ति को कृष्णा नदी के मुहाने तक बढ़ाया। उनके शासनकाल के दौरान जारी किए गए सिक्कों पर जहाजों का चित्रण किया गया था, जो सातवाहनों की नौसैनिक शक्ति और समुद्री व्यापार को दर्शाता है।



राजवंश का पतन

सातवाहनों ने बहुत समृद्धि और शक्ति का दौर देखा, लेकिन अंततः उनका वंश पतन की ओर चला गया। यज्ञ श्री सातकर्णी सातवाहनों के अंतिम महान शासक थे और उनका साम्राज्य अंततः विखंडित हो गया। हालाँकि, उनकी विरासत ने दक्कन क्षेत्र के इतिहास और संस्कृति को प्रभावित करना जारी रखा।



निष्कर्ष

सातवाहन राजवंश, जिसने लगभग पाँच शताब्दियों तक भारत के दक्कन क्षेत्र पर शासन किया, ने प्राचीन भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके शासन की विशेषता समृद्धि, सांस्कृतिक विकास और समुद्री व्यापार थी। हालाँकि उनके साम्राज्य का अंत हो गया, लेकिन उनकी विरासत ने क्षेत्र के सांस्कृतिक और राजनीतिक परिदृश्य को आकार देना जारी रखा। प्रशासन, साहित्य और व्यापार में सातवाहनों की उपलब्धियाँ भारतीय इतिहास पर उनके स्थायी प्रभाव का प्रमाण हैं।



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