![]() |
[प्राचीन इतिहास - नोट्स]*अध्याय 16. राष्ट्रकूट वंश |
प्राचीन इतिहास के नोट्स - राष्ट्रकूट राजवंश
राष्ट्रकूट एक प्रमुख भारतीय राजवंश था जिसने 8वीं से 10वीं शताब्दी ई. तक दक्कन क्षेत्र पर शासन किया। वे पश्चिमी चालुक्यों के उत्तराधिकारी बने और मान्यखेत (आधुनिक मालखेड) में अपनी राजधानी स्थापित की। राष्ट्रकूट अपनी सैन्य शक्ति, सांस्कृतिक संरक्षण और भारतीय कला और वास्तुकला में अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाने जाते थे।
प्रमुख बिंदु
* दक्कन पर शासन: राष्ट्रकूटों ने 8वीं से 10वीं शताब्दी तक दक्कन क्षेत्र पर शासन किया।
* पश्चिमी चालुक्यों के उत्तराधिकारी: पश्चिमी चालुक्यों के उत्तराधिकारी।
* राजधानी: मान्यखेता (आधुनिक मालखेड) में अपनी राजधानी स्थापित की।
* सैन्य कौशल, सांस्कृतिक संरक्षण, तथा भारतीय कला और वास्तुकला में योगदान के लिए प्रसिद्ध ।
राष्ट्रकूट एक शक्तिशाली और प्रभावशाली राजवंश था जिसने दक्कन क्षेत्र के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी सैन्य उपलब्धियाँ, सांस्कृतिक संरक्षण और कला और वास्तुकला में योगदान ने एक स्थायी विरासत छोड़ी जिसकी आज भी प्रशंसा और अध्ययन किया जाता है।
राष्ट्रकूट (755 – 975 ई.): दक्कन का एक प्रभावशाली राजवंश
राष्ट्रकूट एक शक्तिशाली भारतीय राजवंश था जिसने 8वीं से 10वीं शताब्दी ई. तक दक्कन क्षेत्र पर शासन किया था। उनकी कन्नड़ मूल और भाषा ने उनकी सांस्कृतिक पहचान और राजनीतिक प्रभाव को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
स्थापना और विस्तार
* कन्नड़ मूल और भाषा: राष्ट्रकूट कन्नड़ मूल के थे और कन्नड़ बोलते थे।
* दन्तिदुर्ग की विजय: गुर्जरों और पश्चिमी चालुक्यों को हराकर राजवंश की स्थापना की।
* कृष्ण प्रथम का विस्तार: गंग और पूर्वी चालुक्यों को हराकर राजवंश का विस्तार जारी रखा।
* एलोरा का कैलास मंदिर: कृष्ण प्रथम को इस भव्य मंदिर के निर्माण के लिए जाना जाता है।
सांस्कृतिक और धार्मिक संरक्षण
* अमोघवर्ष प्रथम का सांस्कृतिक संरक्षण: एक लम्बे समय तक शासन करने वाला शासक जिसने साहित्य, कला और धर्म को समर्थन दिया।
* जैन संरक्षण: अमोघवर्ष प्रथम एक कट्टर जैन थे और उन्होंने जैन संस्थाओं का समर्थन किया।
* कविराजमार्ग: अमोघवर्ष प्रथम द्वारा रचित काव्यशास्त्र पर एक प्रभावशाली कन्नड़ ग्रंथ।
सैन्य विजय और पतन
* गोविंद तृतीय की विजयें: उत्तर भारतीय राज्यों पर विजय प्राप्त की।
* कृष्ण तृतीय के अभियान: चोलों के विरुद्ध सफलतापूर्वक अभियान चलाया और दक्षिण भारत के क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया।
* पतन: कृष्ण तृतीय की मृत्यु के बाद राष्ट्रकूटों की शक्ति में गिरावट शुरू हो गई।
प्रमुख बिंदु
* कन्नड़ मूल: राष्ट्रकूट कन्नड़ मूल और भाषा के थे।
* सैन्य विजय: विभिन्न शासकों के अधीन महत्वपूर्ण सैन्य विजय हासिल की।
* सांस्कृतिक संरक्षण: कला, साहित्य और धर्म को समर्थन दिया गया, विशेष रूप से अमोघवर्ष प्रथम के शासनकाल के दौरान।
* पतन: अंततः सत्ता खो दी और अन्य राजवंशों ने उनका स्थान ले लिया।
राष्ट्रकूट एक शक्तिशाली और प्रभावशाली राजवंश था जिसने दक्कन क्षेत्र के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी सैन्य विजय, सांस्कृतिक उपलब्धियाँ और कला और वास्तुकला में योगदान ने एक स्थायी विरासत छोड़ी।
राष्ट्रकूटों के अधीन प्रशासन
राष्ट्रकूट साम्राज्य की विशेषता एक सुव्यवस्थित और कुशल प्रशासनिक व्यवस्था थी। साम्राज्य को कई प्रांतों में विभाजित किया गया था जिन्हें राष्ट्र कहा जाता था, जिनमें से प्रत्येक का शासन एक राष्ट्रपति द्वारा किया जाता था। इन राष्ट्रों को आगे चलकर विषयों या जिलों में विभाजित किया गया था, जिनका नेतृत्व विषयपति करते थे।
पदानुक्रमिक संरचना
* राष्ट्र: साम्राज्य को प्रांतों में विभाजित किया गया था जिन्हें राष्ट्र कहा जाता था, और इनका शासन राष्ट्रपतियों द्वारा होता था।
* विषय: राष्ट्रों को आगे विषयों या जिलों में विभाजित किया गया था, जिनके प्रमुख विषयपति होते थे।
* भुक्तियाँ: लगभग 50-70 गाँवों वाली भुक्तियों का प्रशासन केंद्रीय सरकार द्वारा नियुक्त भोगपतियों द्वारा किया जाता था।
केंद्रीय निरीक्षण और स्थानीय भागीदारी
* केन्द्र सरकार की भूमिका: केन्द्र सरकार ने प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
* ग्राम प्रधान: दिन-प्रतिदिन के कार्यों के लिए जिम्मेदार।
* ग्राम सभाएँ: निर्णय लेने और सामुदायिक शासन में भाग लेती हैं।
राष्ट्रकूटों की प्रशासनिक व्यवस्था ने, जिसमें केंद्रीय निरीक्षण और स्थानीय भागीदारी का संयोजन था, साम्राज्य की स्थिरता और समृद्धि में योगदान दिया। इस सुव्यवस्थित संरचना ने पूरे विशाल क्षेत्र में प्रभावी शासन और संचार सुनिश्चित किया।
राष्ट्रकूटों के अधीन समाज और अर्थव्यवस्था
राष्ट्रकूट राजवंश, जिसने 8वीं से 10वीं शताब्दी ई. तक दक्कन क्षेत्र पर शासन किया, सांस्कृतिक और आर्थिक समृद्धि के महत्वपूर्ण दौर से गुजरा। उनके शासनकाल में विभिन्न धार्मिक संप्रदायों का उत्कर्ष हुआ, शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना हुई और सक्रिय व्यापार और कृषि के माध्यम से आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला।
धार्मिक सद्भाव
* विभिन्न धर्मों का विकास: वैष्णव, शैव, जैन और बौद्ध धर्म फले-फूले।
* धार्मिक सहिष्णुता: वैष्णव और शैव धर्म के प्रभुत्व के बावजूद, जैन और बौद्ध धर्म का विकास जारी रहा।
शिक्षण संस्थानों
* शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना: राष्ट्रकूटों ने ऐसी संस्थाओं की स्थापना का समर्थन किया।
* सलातोगी कॉलेज: एक उल्लेखनीय उदाहरण, जो दान के माध्यम से वित्त पोषित है।
* बौद्धिक विकास को बढ़ावा देना: इन संस्थानों ने शिक्षा और बौद्धिक विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आर्थिक समृद्धि
* अरब व्यापारियों के साथ सक्रिय व्यापार: आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
* प्राकृतिक संसाधन एवं कृषि उत्पादन: इन संसाधनों से लाभान्वित।
प्रमुख बिंदु
* धार्मिक बहुलवाद: सहिष्णुता को बढ़ावा दिया और विभिन्न धर्मों का समर्थन किया।
* शैक्षिक संस्थान : बौद्धिक विकास को बढ़ावा देने के लिए स्थापित।
* आर्थिक समृद्धि: व्यापार और कृषि के कारण समृद्ध अर्थव्यवस्था।
धार्मिक सद्भाव, शिक्षा और आर्थिक विकास के प्रति राष्ट्रकूटों की प्रतिबद्धता ने उनके साम्राज्य की समृद्धि और सांस्कृतिक जीवंतता में योगदान दिया। इन कारकों ने उनके शासन के दौरान दक्कन क्षेत्र के समाज और अर्थव्यवस्था को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
राष्ट्रकूटों का सांस्कृतिक योगदान
राष्ट्रकूट राजवंश, जिसने 8वीं से 10वीं शताब्दी ई. तक दक्कन क्षेत्र पर शासन किया, कला और साहित्य के संरक्षण के लिए जाना जाता था। राष्ट्रकूट शासकों के संरक्षण में, संस्कृत, जैन और कन्नड़ साहित्य का विकास हुआ, जिसने दक्षिण भारत के सांस्कृतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस अवधि के दौरान विद्वानों और कवियों ने साहित्य, गणित और दर्शन सहित विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान दिया।
संस्कृत साहित्य
* संस्कृत साहित्य के संरक्षक: राष्ट्रकूटों ने संस्कृत विद्वानों का समर्थन किया।
* त्रिविक्रम और हलायुद्ध: उल्लेखनीय विद्वान जिन्होंने संस्कृत साहित्य में योगदान दिया।
* नलचम्पु और कविरहस्य: क्रमशः त्रिविक्रम और हलायुध की महत्वपूर्ण कृतियाँ।
जैन साहित्य
* अमोघवर्ष प्रथम का संरक्षण: जैन साहित्य उसके संरक्षण में फला-फूला।
* जिनसेन और गुणभद्र: उल्लेखनीय जैन विद्वान जिन्होंने महत्वपूर्ण रचनाएँ लिखीं।
* पार्श्वभुदय और आदिपुराण: क्रमश: जिनसेना और गुणभद्र द्वारा लिखित।
कन्नड़ साहित्य
* कन्नड़ साहित्य की शुरुआत: राष्ट्रकूट काल में कन्नड़ साहित्य की शुरुआत हुई।
* अमोघवर्ष प्रथम का कविराजमार्ग: कन्नड़ में पहला महत्वपूर्ण काव्य कार्य माना जाता है।
* पम्पा और पोन्ना: प्रसिद्ध कन्नड़ कवि जिन्होंने महत्वपूर्ण रचनाएँ लिखीं (विक्रमसेनविजय और शांतिपुराण)।
गणितीय योगदान
* वीराचार्य: एक गणितज्ञ जिन्होंने गणित पर एक ग्रंथ गणितसारम लिखा।
राष्ट्रकूटों के सांस्कृतिक संरक्षण और ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों के समर्थन ने एक समृद्ध बौद्धिक वातावरण और समृद्ध साहित्यिक विरासत को जन्म दिया। संस्कृत, जैन और कन्नड़ साहित्य के साथ-साथ गणित में उनके योगदान को आज भी सराहा और अध्ययन किया जाता है।
राष्ट्रकूटों के अधीन कला और वास्तुकला
राष्ट्रकूट कला और वास्तुकला के संरक्षण के लिए प्रसिद्ध थे, उन्होंने स्मारकीय संरचनाओं और उत्कृष्ट मूर्तियों की एक समृद्ध विरासत छोड़ी। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृतियाँ एलोरा और एलीफेंटा में पाई जाती हैं।
एलोरा
* कैलासा मंदिर: एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल, जो एक विशाल चट्टान पर बना है।
* मूर्तियां: भैंसा राक्षस का वध करती दुर्गा का चित्रण, कैलाश पर्वत को उठाने का प्रयास करता रावण, तथा रामायण के दृश्य।
एलीफेंटा
* मूर्तियां: त्रिमूर्ति, शिव के तीन पहलुओं का प्रतिनिधित्व करने वाली एक विशाल आकृति।
* गुफा वास्तुकला: एलीफेंटा गुफाएं राष्ट्रकूटों की गुफा वास्तुकला में निपुणता को दर्शाती हैं।
वास्तुकला प्रभाव
* शैलियों का संयोजन: राष्ट्रकूटों की स्थापत्य कला में द्रविड़ और उत्तर भारतीय दोनों शैलियों का प्रभाव प्रतिबिम्बित होता है।
कला और वास्तुकला में राष्ट्रकूटों का योगदान उनकी स्मारकीय संरचनाओं और उत्कृष्ट मूर्तियों में स्पष्ट है। एलोरा में कैलाश मंदिर और एलीफेंटा गुफाएँ उनकी कलात्मक विरासत के सबसे प्रभावशाली उदाहरणों में से हैं। ये कृतियाँ विद्वानों और आगंतुकों को समान रूप से प्रेरित और आकर्षित करती रहती हैं।
राष्ट्रकूट राजवंश का अवलोकन
राष्ट्रकूट दक्कन क्षेत्र में एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभरे, उन्होंने अपनी सैन्य विजय, सांस्कृतिक उपलब्धियों और वास्तुशिल्प योगदान के माध्यम से एक स्थायी विरासत छोड़ी। उनके शासन की विशेषता समृद्धि, धार्मिक सहिष्णुता और बौद्धिक विकास का दौर था।
मुख्य सफलतायें
* सैन्य प्रभुत्व: राष्ट्रकूटों ने सैन्य विजय और विस्तारवादी नीतियों के माध्यम से दक्कन पर अपना नियंत्रण स्थापित किया।
* सांस्कृतिक संरक्षण: साहित्य, कला और वास्तुकला सहित विभिन्न सांस्कृतिक प्रयासों को समर्थन दिया।
* धार्मिक सहिष्णुता: धार्मिक सहिष्णुता का माहौल विकसित किया गया।
स्थायी विरासत
* वास्तुकला के चमत्कार: एलोरा का कैलासा मंदिर और अन्य संरचनाएं आज भी आगंतुकों को प्रेरित और मोहित करती हैं।
* साहित्य में योगदान: साहित्य, विशेषकर कन्नड़ साहित्य में उनके योगदान ने दक्षिण भारतीय संस्कृति को समृद्ध किया है।
* कला, धर्म और शिक्षा का संरक्षण: इन क्षेत्रों के संरक्षक के रूप में राजवंश की विरासत महत्वपूर्ण बनी हुई है।
राष्ट्रकूट एक शक्तिशाली और प्रभावशाली राजवंश था जिसने दक्कन क्षेत्र के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी सैन्य उपलब्धियों, सांस्कृतिक संरक्षण और धार्मिक सहिष्णुता ने क्षेत्र के परिदृश्य और विरासत पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ा। उनके योगदान का आज भी जश्न मनाया जाता है और उनका अध्ययन किया जाता है।