[प्राचीन इतिहास - नोट्स]*अध्याय 7. मौर्य साम्राज्य

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[प्राचीन इतिहास - नोट्स]*अध्याय 7. मौर्य साम्राज्य

प्राचीन इतिहास के नोट्स - मौर्य साम्राज्य

प्राचीन भारत में मौर्य साम्राज्य की स्थापना उपमहाद्वीप के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। पहली बार, भारत का एक बड़ा हिस्सा एक ही शासक के अधीन एकीकृत हुआ, जिससे राजनीतिक स्थिरता और सांस्कृतिक विकास का युग शुरू हुआ। इस अवधि में ऐतिहासिक अभिलेख रखने में भी उल्लेखनीय प्रगति देखी गई, जिसमें साहित्यिक और अभिलेखीय स्रोतों का खजाना मौर्य युग के बारे में मूल्यवान जानकारी प्रदान करता है।

प्रमुख बिंदु:

 * राजनीतिक एकता: चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा स्थापित मौर्य साम्राज्य भारत के एक महत्वपूर्ण हिस्से को एकीकृत करने वाला पहला साम्राज्य था।

 * ऐतिहासिक महत्व: यह काल भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने भावी साम्राज्यों की नींव रखी और उपमहाद्वीप की दिशा को आकार दिया।

 * ऐतिहासिक अभिलेख: विभिन्न साहित्यिक और पुरालेखीय स्रोतों के कारण मौर्य युग का अच्छा दस्तावेजीकरण किया जा सका है।

 * उन्नति: मौर्य शासन के दौरान प्रशासन, संस्कृति और ऐतिहासिक अभिलेख-पालन सहित विभिन्न क्षेत्रों में उन्नति हुई।


मौर्य साम्राज्य के साहित्यिक स्रोत

भारतीय इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण कालखंडों में से एक मौर्य साम्राज्य का इतिहास साहित्यिक स्रोतों के समृद्ध संग्रह की बदौलत अच्छी तरह से प्रलेखित है। ये स्रोत, देशी और विदेशी दोनों, मौर्य जीवन के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं के बारे में अमूल्य जानकारी प्रदान करते हैं।

प्रमुख साहित्यिक स्रोत:

 * अर्थशास्त्र: कौटिल्य द्वारा शासन, अर्थशास्त्र और राजकला पर एक व्यापक ग्रंथ।

 * मुद्राराक्षस: विशाखदत्त द्वारा रचित एक संस्कृत नाटक जिसमें मौर्य साम्राज्य की स्थापना का चित्रण है।

 * इंडिका: मेगस्थनीज द्वारा रचित एक यूनानी विवरण, जो मौर्यों पर एक विदेशी परिप्रेक्ष्य प्रदान करता है।

 * पुराण, बौद्ध साहित्य और सीलोन इतिहास: मौर्य काल के बारे में जानकारी देने वाले अतिरिक्त स्रोत।

इन स्रोतों का महत्व:

 * राजनीतिक और प्रशासनिक अंतर्दृष्टि: स्रोत मौर्य प्रशासन, सरकारी विभागों और सैन्य संगठन पर विस्तृत जानकारी प्रदान करते हैं।

 * आर्थिक और सामाजिक जानकारी: वे आर्थिक गतिविधियों, सामाजिक जीवन, जाति व्यवस्था और धार्मिक प्रथाओं के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं।

 * विदेशी परिप्रेक्ष्य: मेगस्थनीज की इंडिका मौर्य साम्राज्य पर एक अद्वितीय विदेशी परिप्रेक्ष्य प्रदान करती है।

 * विविध दृष्टिकोण: स्वदेशी और विदेशी स्रोतों का संयोजन मौर्य काल की व्यापक समझ प्रदान करता है।

उल्लेखनीय बातें:

 * कौटिल्य का अर्थशास्त्र मौर्यों का सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक स्रोत माना जाता है।

 * मुद्राराक्षस मौर्य साम्राज्य की स्थापना का नाटकीय विवरण प्रदान करता है।

 * मेगस्थनीज की इंडिका एक विदेशी परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत करती है, लेकिन इसमें अतिशयोक्ति या अशुद्धियाँ हो सकती हैं।

 * पुराण, बौद्ध साहित्य और सीलोन इतिहास पूरक जानकारी प्रदान करते हैं।


पुरातात्विक स्रोत: अशोक के शिलालेख

मौर्य साम्राज्य के तीसरे शासक अशोक ने शिलालेखों की एक उल्लेखनीय विरासत छोड़ी है जो उनके शासनकाल और मौर्य काल के बारे में अमूल्य जानकारी प्रदान करती है। अशोक के शिलालेखों के नाम से जाने जाने वाले ये शिलालेख प्राचीन भारत के अध्ययन के लिए सबसे महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्रोतों में से हैं।

प्रमुख बिंदु:

 * व्याख्या: अशोक के शिलालेखों को 1837 में जेम्स प्रिंसेप द्वारा पढ़ा गया था।

 * भाषा और लिपियाँ: ये शिलालेख मुख्यतः प्राकृत भाषा में ब्राह्मी या खरोष्ठी लिपि में लिखे गए हैं।

 * शिलालेखों के प्रकार: प्रमुख और लघु शिलालेख और स्तंभ शिलालेख।

 * विषयवस्तु: धम्म, प्रशासन, कलिंग युद्ध और धम्म प्रचार।

 * महत्व: ये शिलालेख अशोक के शासनकाल और मौर्य काल के बारे में अमूल्य जानकारी प्रदान करते हैं।

उल्लेखनीय बातें:

 * कलिंग युद्ध के बाद अशोक द्वारा बौद्ध धर्म अपनाना एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जिसका उल्लेख शिलालेखों में किया गया है।

 * ये शिलालेख अशोक के विचारों, नीतियों और उपलब्धियों के बारे में प्रत्यक्ष जानकारी प्रदान करते हैं।

 * वे प्राचीन भारत के राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक परिदृश्य पर प्रकाश डालते हैं।

 * मौर्य साम्राज्य और अशोक के शासनकाल को समझने के लिए ये शिलालेख एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं।


मौर्यों का राजनीतिक इतिहास

चंद्रगुप्त मौर्य (322 – 298 ईसा पूर्व): मौर्य साम्राज्य के संस्थापक

मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य ने प्राचीन भारत के इतिहास को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके शासनकाल में महत्वपूर्ण राजनीतिक एकीकरण, क्षेत्रीय विस्तार और प्रशासनिक सुधारों का दौर चला।

प्रमुख बिंदु:

 * विद्रोह और सत्ता में वृद्धि: चंद्रगुप्त ने कौटिल्य की सहायता से नंद वंश को उखाड़ फेंका।

 * समेकन और विस्तार: उन्होंने गंगा घाटी पर नियंत्रण स्थापित किया और साम्राज्य का पश्चिम और दक्षिण की ओर विस्तार किया।

 * सेल्यूकस निकेटर के साथ संघर्ष: सेल्यूकस को हराया और क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया।

 * धार्मिक परिवर्तन: जैन धर्म अपनाया और राजगद्दी त्याग दी।

 * विरासत: चंद्रगुप्त के शासनकाल ने मौर्य साम्राज्य की नींव रखी और भारतीय इतिहास को प्रभावित किया।

उल्लेखनीय बातें:

 * चंद्रगुप्त की सफलता में कौटिल्य का रणनीतिक मार्गदर्शन महत्वपूर्ण था।

 * सेल्यूकस निकेटर पर विजय ने इस क्षेत्र में मौर्य साम्राज्य का प्रभुत्व स्थापित किया।

 *चन्द्रगुप्त द्वारा जैन धर्म अपनाना उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ था।

 * उनकी विरासत में राजनीतिक एकीकरण, क्षेत्रीय विस्तार और प्रशासनिक सुधार शामिल हैं।


बिन्दुसार (298-273 ईसा पूर्व): दूसरा मौर्य सम्राट

चंद्रगुप्त मौर्य के पुत्र बिन्दुसार अपने पिता के बाद मौर्य साम्राज्य के दूसरे शासक बने। उन्होंने अपने पिता द्वारा शुरू की गई विस्तारवादी नीतियों को जारी रखा, जिससे प्राचीन भारत में साम्राज्य का प्रभुत्व और मजबूत हुआ।

प्रमुख बिंदु:

 * सैन्य विजय: बिन्दुसार ने मौर्य साम्राज्य का विस्तार दक्षिण की ओर दक्कन तक किया।

 * विदेशी संबंध: सीरिया से एक दूतावास प्राप्त हुआ और राजनयिक आदान-प्रदान में संलग्न रहा।

 * धार्मिक संरक्षण: आजीविकों को समर्थन दिया गया।

 * उत्तराधिकार: अशोक को उज्जैन का राज्यपाल नियुक्त किया गया।

उल्लेखनीय बातें:

 * बिन्दुसार के शासनकाल में उसके पिता चंद्रगुप्त मौर्य की विस्तारवादी नीतियां जारी रहीं।

 * सीरिया के साथ राजनयिक आदान-प्रदान मौर्य साम्राज्य के अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव को उजागर करता है।

 * आजीविकों के प्रति उनका समर्थन धार्मिक सहिष्णुता को दर्शाता है।

 * अशोक की राज्यपाल के रूप में नियुक्ति ने उसके भावी शासन और महत्वपूर्ण सुधारों की आधारशिला रखी।


अशोक महान (273 – 232 ई.पू.): भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व

मौर्य साम्राज्य के तीसरे शासक अशोक को भारतीय इतिहास के सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक माना जाता है। उनके शासनकाल में महत्वपूर्ण राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक परिवर्तन हुए।

प्रमुख बिंदु:

 प्रारंभिक जीवन: उज्जैन के गवर्नर के रूप में कार्य किया और तक्षशिला में विद्रोह को दबाया।

 * उत्तराधिकार: सिंहासन का उत्तराधिकार कथित तौर पर विवादास्पद था।

 * कलिंग युद्ध: कलिंग की विजय के कारण अशोक ने बौद्ध धर्म अपना लिया।

 * विरासत: अशोक का शासनकाल महत्वपूर्ण राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक परिवर्तनों से चिह्नित था।

उल्लेखनीय बातें:

 * कलिंग युद्ध अशोक के जीवन और शासनकाल में एक महत्वपूर्ण मोड़ था।

 * उनके बौद्ध धर्म अपनाने और उसके बाद धम्म के प्रसार के प्रयासों का भारत पर गहरा प्रभाव पड़ा।

 * उनके प्रारंभिक जीवन और सिंहासन के उत्तराधिकार के विवरण पर बहस जारी है।

 * शांति और धार्मिक सहिष्णुता के समर्थक के रूप में अशोक की विरासत निर्विवाद है।


अशोक और बौद्ध धर्म का प्रसार

अशोक का बौद्ध धर्म अपनाना उनके शासनकाल का एक महत्वपूर्ण क्षण था और इसका मौर्य साम्राज्य पर गहरा प्रभाव पड़ा। अहिंसा, सहिष्णुता और सामाजिक न्याय के बौद्ध दर्शन धम्म को फैलाने के उनके बाद के प्रयासों ने भारतीय समाज और संस्कृति में महत्वपूर्ण बदलाव लाए।

प्रमुख बिंदु:

 * धर्मांतरण: अशोक का बौद्ध धर्म में धर्मांतरण एक क्रमिक प्रक्रिया थी।

 * धार्मिक प्रथाएँ: उन्होंने बौद्ध प्रथाओं को अपनाया और बौद्ध धर्म के प्रसार को बढ़ावा दिया।

 * धर्म महामात्र: अशोक ने धम्म के प्रचार-प्रसार की देखरेख के लिए अधिकारियों की नियुक्ति की।

 * विदेशी मिशन: उन्होंने श्रीलंका सहित विभिन्न क्षेत्रों में बौद्ध मिशन भेजे।

 * तृतीय बौद्ध संगीति: अशोक ने बौद्ध संघ को मजबूत और एकीकृत करने के लिए इस संगीति का आयोजन किया था।

उल्लेखनीय बातें:

 * अशोक का बौद्ध धर्म अपनाना उसके शासनकाल में एक महत्वपूर्ण मोड़ था।

 * धम्म के प्रसार के उनके प्रयासों का भारतीय समाज और संस्कृति पर स्थायी प्रभाव पड़ा।

 * बौद्ध मिशनों की स्थापना ने भारत से बाहर बौद्ध धर्म के प्रसार में योगदान दिया।

 * तृतीय बौद्ध संगीति ने बौद्ध शिक्षाओं को मानकीकृत करने में सहायता की।

 * बौद्ध धर्म के समर्थक तथा शांति और सद्भाव के प्रवर्तक के रूप में अशोक की विरासत निर्विवाद है।


अशोक के साम्राज्य का विस्तार

अशोक के शासनकाल में मौर्य साम्राज्य अपने चरम पर था, जिसमें प्राचीन भारत का एक विशाल क्षेत्र शामिल था। हालांकि साम्राज्य की सटीक सीमाओं पर बहस होती है, लेकिन ऐतिहासिक स्रोत इसके विस्तार के बारे में सुराग देते हैं।

प्रमुख बिंदु:

 * दक्षिणी सीमाएँ: मौर्य साम्राज्य की सीमा चोल, पांड्य, सत्यपुत्र और केरलपुत्र जैसे राज्यों से लगती थी।

 * उत्तरी और पश्चिमी सीमाएँ: साम्राज्य में संभवतः कश्मीर और नेपाल भी शामिल थे।

 * उत्तर-पश्चिमी सीमा: उत्तर-पश्चिमी सीमा चन्द्रगुप्त मौर्य के समय से ही लगभग अपरिवर्तित रही।

उल्लेखनीय बातें:

 * अशोक के अधीन मौर्य साम्राज्य की सटीक सीमाओं पर विवाद है।

 * ऐतिहासिक स्रोत साम्राज्य की सीमा के बारे में सुराग प्रदान करते हैं।

 * अशोक के शासन में मौर्य साम्राज्य एक विशाल और शक्तिशाली इकाई थी।

 * इसका प्रभाव दूर-दूर तक महसूस किया गया, जिसने उपमहाद्वीप के इतिहास को आकार दिया।


अशोक का धम्म: अहिंसा और सामाजिक न्याय का दर्शन

अशोक का धम्म, बौद्ध धर्म से प्रभावित होने के बावजूद, एक व्यापक अवधारणा थी जिसमें जीवन जीने का एक तरीका, एक आचार संहिता और सभी लोगों के लिए अपनाने और अभ्यास करने के लिए सिद्धांतों का एक समूह शामिल था। जैसा कि उनके शिलालेखों में बताया गया है, अशोक के धम्म ने निम्नलिखित प्रमुख विशेषताओं पर जोर दिया:

 * नैतिक आचरण: पारिवारिक रिश्तों, अहिंसा, सत्यवादिता, शिक्षकों के प्रति सम्मान और रिश्तेदारों के प्रति दयालुता पर जोर दिया गया।

 * सुशासन: कुशल प्रशासन, सामाजिक कल्याण और मानवीय व्यवहार की वकालत की गई।

 * सहिष्णुता और अहिंसा: पशु कल्याण, धार्मिक सहिष्णुता और धम्म के माध्यम से विजय को बढ़ावा दिया गया।

बौद्ध धर्म से संबंध:

 * बौद्ध धर्म से प्रभावित होने के बावजूद, अशोक का धम्म एक व्यापक अवधारणा थी।

 * बौद्ध धर्म उनका व्यक्तिगत विश्वास बना रहा, जबकि धम्म सभी लोगों के लिए एक दर्शन था।

उल्लेखनीय बातें:

 * अशोक का धम्म एक व्यापक दर्शन था जिसमें नैतिक आचरण, सुशासन और धार्मिक सहिष्णुता शामिल थी।

 * यह एक ऐसी जीवन शैली थी जिसे वह सभी लोगों के बीच बढ़ावा देना चाहते थे।

 * अहिंसा, सामाजिक न्याय और लोगों के कल्याण पर उनके जोर की आज भी प्रशंसा की जाती है।


अशोक: मानवता का प्रकाश स्तंभ

मौर्य साम्राज्य के तीसरे शासक अशोक को इतिहास के सबसे महान राजाओं में से एक माना जाता है। उनकी उपलब्धियाँ और विरासत विद्वानों और आम जनता को समान रूप से प्रेरित और आकर्षित करती हैं।

प्रमुख बिंदु:

 * वैश्विक हस्ती: अशोक को इतिहास के सबसे महान राजाओं में से एक माना जाता है, उनकी तुलना सिकंदर महान और जूलियस सीज़र से की जा सकती है।

 * एच.जी. वेल्स का आकलन: वेल्स ने अशोक को सम्राटों के बीच एक "स्टार" के रूप में वर्णित किया।

 * कार्यशील व्यक्ति: अशोक एक व्यावहारिक शासक थे और शासन के प्रति उनका दृष्टिकोण व्यावहारिक था।

 * धम्म की सार्वभौमिक अपील: उनके धम्म में अहिंसा, सहिष्णुता और सभी प्राणियों के कल्याण पर जोर दिया गया।

 * परोपकारी प्रशासन: अशोक ने सामाजिक न्याय, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा के लिए नीतियां लागू कीं।

 * अनाक्रमण और शांति: कलिंग युद्ध के बाद उन्होंने युद्ध का त्याग कर दिया और शांति की नीति अपनाई।

उल्लेखनीय बातें:

 * अशोक की विरासत करुणा, बुद्धिमत्ता और सुशासन की शक्ति का प्रमाण है।

 * उनकी उपलब्धियां हमें एक बेहतर विश्व के निर्माण के लिए प्रेरित और चुनौती देती रहती हैं।

 * अशोक का नाम शांति, न्याय और मानव कल्याण के आदर्शों का पर्याय है।


मौर्य साम्राज्य का पतन

232 ईसा पूर्व में अशोक की मृत्यु के बाद, मौर्य साम्राज्य का पतन शुरू हो गया। साम्राज्य दो भागों में विभाजित हो गया: पश्चिमी क्षेत्र अशोक के बेटे कुणाल के शासन के अधीन था, और पूर्वी क्षेत्र अशोक के पोते दशरथ के शासन के अधीन था।

प्रमुख बिंदु:

 * विभाजन: अशोक की मृत्यु के बाद साम्राज्य पश्चिमी और पूर्वी भागों में विभाजित हो गया।

 * पश्चिमी भाग: बैक्ट्रियन आक्रमणों और अंततः पतन का सामना करना पड़ा।

 * पूर्वी भाग: सम्प्रति के अधीन मौर्य शासन के अधीन रहा।

 * राजवंश का अंत: बृहत्तर की हत्या से मौर्य राजवंश का अंत हो गया।

उल्लेखनीय बातें:

 * आंतरिक विभाजन और बाहरी आक्रमणों ने मौर्य साम्राज्य के पतन में योगदान दिया।

 * साम्राज्य का पूर्वी भाग कुछ समय तक जीवित रहने में सफल रहा।

 * बृहत्तरथ की हत्या ने शुंग वंश के उत्थान का मार्ग प्रशस्त किया।


मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण

प्राचीन भारत के सबसे शक्तिशाली राजवंशों में से एक मौर्य साम्राज्य का पतन सदियों से विद्वानों के बीच बहस का विषय रहा है। हालाँकि इसके पतन में कई कारक शामिल थे, लेकिन पारंपरिक दृष्टिकोण अक्सर अशोक और उसके कमज़ोर उत्तराधिकारियों की नीतियों को पतन का कारण मानता है। हालाँकि, अधिक सूक्ष्म विश्लेषण से उन कारकों की जटिल परस्पर क्रिया का पता चलता है जो साम्राज्य के पतन का कारण बने।

पारंपरिक दृश्य:

 * अशोक की बौद्ध समर्थक नीतियों से ब्राह्मण नाराज हो गये।

 * शांतिवादी नीति ने सेना को कमजोर कर दिया।

सूक्ष्म विश्लेषण:

 * इस दावे के समर्थन में कोई ठोस सबूत नहीं है कि अशोक ने ब्राह्मणों से दुश्मनी की थी।

 * ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि अशोक ने एक मजबूत सैन्य उपस्थिति बनाए रखी थी।

 * प्रशासनिक दुर्व्यवहार, भ्रष्टाचार और कमजोर उत्तराधिकारियों ने गिरावट में योगदान दिया।

 * अशोक की मृत्यु के बाद साम्राज्य के विभाजन से केंद्रीय सत्ता कमजोर हो गई।

मौर्य साम्राज्य का पतन एक जटिल प्रक्रिया थी जो कई कारकों के संयोजन से उत्पन्न हुई थी, जिसका कारण केवल अशोक की नीतियां या कमजोर उत्तराधिकारी नहीं थे।


मौर्य साम्राज्य का अवलोकन 

चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा स्थापित और अशोक द्वारा आगे विस्तारित मौर्य साम्राज्य ने भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ को चिह्नित किया। यह राजनीतिक एकीकरण, सांस्कृतिक विकास और प्रशासनिक नवाचार का काल था।

मुख्य सफलतायें:

 * राजनीतिक एकीकरण: विशाल क्षेत्रों को एक ही शासन के अधीन लाया गया।

 * प्रशासनिक सुधार: एक केंद्रीकृत प्रशासन की स्थापना की गई।

 * सांस्कृतिक उत्कर्ष: कला, साहित्य और दर्शन में योगदान दिया।

 * धार्मिक सहिष्णुता: विभिन्न धर्मों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा दिया गया।

पतन और विरासत:

 * आंतरिक विभाजन, बाहरी आक्रमण और प्रशासनिक चुनौतियों के कारण गिरावट आई।

 * बाद के राजवंशों और समाजों पर स्थायी प्रभाव छोड़ा।

महत्व:

 * मौर्य काल भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है।

 * समृद्ध ऐतिहासिक अभिलेख इस युग की विस्तृत जानकारी प्रदान करते हैं।

 * मौर्य साम्राज्य की उपलब्धियां भारतीय इतिहास की दिशा को आकार देती रहीं।


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