राष्ट्रकूट (755 – 975 ई.): दक्कन का एक प्रभावशाली राजवंश

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राष्ट्रकूट (755 – 975 ई.): दक्कन का एक प्रभावशाली राजवंश

परिचय 

राष्ट्रकूट एक शक्तिशाली भारतीय राजवंश था जिसने 8वीं से 10वीं शताब्दी तक दक्कन क्षेत्र पर शासन किया था। उनकी कन्नड़ मूल और भाषा ने उनकी सांस्कृतिक पहचान और राजनीतिक प्रभाव को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।



राष्ट्रकूट (755 – 975 ई.): दक्कन का एक प्रभावशाली राजवंश

स्थापना और विस्तार

दंतिदुर्ग: इस राजवंश की स्थापना दंतिदुर्ग ने की थी, जिन्होंने गुर्जरों और पश्चिमी चालुक्यों के खिलाफ महत्वपूर्ण सैन्य जीत हासिल की। ​​इन विजयों ने राष्ट्रकूटों को दक्कन में एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित किया।


कृष्ण प्रथम: दंतिदुर्ग के उत्तराधिकारी कृष्ण प्रथम ने राजवंश की विस्तारवादी नीतियों को जारी रखा, गंग और पूर्वी चालुक्यों को हराया। उनका शासनकाल एलोरा में भव्य कैलास मंदिर के निर्माण के लिए भी उल्लेखनीय है।



सांस्कृतिक और धार्मिक संरक्षण

अमोघवर्ष प्रथम: अमोघवर्ष प्रथम, एक लंबे समय तक शासन करने वाले शासक थे, जिन्हें विशेष रूप से उनके सांस्कृतिक और धार्मिक संरक्षण के लिए याद किया जाता है। क्षेत्रीय नुकसानों का सामना करने के बावजूद, उनके शासनकाल में साहित्य, कला और धर्म में महत्वपूर्ण प्रगति हुई। वह एक कट्टर जैन थे और जैन धार्मिक संस्थाओं का समर्थन करते थे।


कविराजमार्ग: अमोघवर्ष प्रथम स्वयं एक प्रसिद्ध विद्वान और लेखक थे, जिन्होंने प्रभावशाली कन्नड़ कृति "कविराजमार्ग" की रचना की, जो काव्यशास्त्र पर एक ग्रंथ है।



सैन्य विजय और पतन

गोविंदा तृतीय: गोविंदा तृतीय, एक अन्य उल्लेखनीय राष्ट्रकूट शासक, ने उत्तर भारतीय राज्यों पर विजय प्राप्त की, जिससे राजवंश की शक्ति और मजबूत हुई।


कृष्ण तृतीय: कृष्ण तृतीय, जो बाद में राष्ट्रकूट वंश के राजा बने, ने चोलों के खिलाफ सफल अभियान चलाए और तंजौर और रामेश्वरम सहित दक्षिण भारत के कई इलाकों पर कब्ज़ा कर लिया। हालाँकि, उनकी मृत्यु के बाद, राष्ट्रकूटों की शक्ति कम होने लगी।



प्रमुख बिंदु

कन्नड़ मूल: राष्ट्रकूट कन्नड़ मूल और भाषा के थे।


सैन्य विजय: राजवंश ने दंतिदुर्ग, कृष्ण प्रथम और गोविंदा तृतीय के नेतृत्व में महत्वपूर्ण सैन्य विजय हासिल की।


सांस्कृतिक संरक्षण: राष्ट्रकूट कला, साहित्य और धर्म के संरक्षक थे, विशेषकर अमोघवर्ष प्रथम के शासनकाल के दौरान।


पतन: अपनी प्रारंभिक सफलताओं के बावजूद, राष्ट्रकूटों ने अंततः अपनी शक्ति खो दी और उनके स्थान पर अन्य राजवंशों ने शासन करना शुरू कर दिया।



निष्कर्ष 

राष्ट्रकूटों ने दक्कन क्षेत्र के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, अपनी सैन्य विजय, सांस्कृतिक उपलब्धियों और वास्तुशिल्प योगदान के माध्यम से एक स्थायी विरासत छोड़ी। उनके शासन ने दक्षिण भारत में समृद्धि और प्रभाव का दौर चिह्नित किया।



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