![]() |
राजराजा प्रथम (985 – 1014 ई.): चोल शक्ति का शिखर |
परिचय
राजराजा प्रथम, जिन्होंने 985 से 1014 ई. तक शासन किया, चोल वंश के सबसे शानदार शासकों में से एक माने जाते हैं। उनके शासनकाल में चोल शक्ति का चरमोत्कर्ष हुआ, जिसमें व्यापक सैन्य विजय, सांस्कृतिक संरक्षण और प्रशासनिक सुधार शामिल थे।
सैन्य विजय
नौसेना विजय: राजराजा प्रथम ने महत्वपूर्ण नौसैनिक विजय प्राप्त की, कंडालुरसलाई की लड़ाई में चेरों को हराया और उनकी नौसेना को नष्ट कर दिया। उन्होंने पांड्य देश पर भी विजय प्राप्त की, जिससे इस क्षेत्र में चोल सत्ता स्थापित हुई।
भूमि विजय: राजराजा प्रथम ने भूमि विजय के माध्यम से चोल साम्राज्य का विस्तार किया, मैसूर क्षेत्र में गंगावाड़ी, ताड़िगैपडी और नोलम्बापडी जैसे क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया।
श्रीलंका पर आक्रमण: उनके बेटे राजेंद्र प्रथम ने श्रीलंका पर सफलतापूर्वक आक्रमण किया, जिसके परिणामस्वरूप द्वीप के उत्तरी भाग पर कब्ज़ा हो गया। श्रीलंका की राजधानी अनुराधापुरा से पोलोन्नारुवा स्थानांतरित कर दी गई, जहाँ एक शिव मंदिर बनाया गया।
पश्चिमी चालुक्य संघर्ष: राजराजा प्रथम ने पश्चिमी चालुक्यों की बढ़ती शक्ति का सामना किया, सत्याश्रय को हराया और रायचूर दोआब और बनवासी जैसे क्षेत्रों पर कब्ज़ा किया। इसने चोल साम्राज्य को तुंगभद्रा नदी तक फैला दिया।
तेलुगु चोडा पुनर्स्थापना: राजराजा प्रथम ने तेलुगु चोडा को हराकर वेंगी सिंहासन को उसके असली शासकों शक्तिवर्मन और विमलादित्य को वापस दिलाया। उन्होंने अपनी बेटी कुंदवई का विवाह विमलादित्य से करके वेंगी शासकों के साथ वैवाहिक गठबंधन भी बनाया।
मालदीव द्वीप विजय: राजराजा प्रथम ने अपनी सैन्य विजय का समापन मालदीव द्वीप के विरुद्ध नौसैनिक अभियान के साथ किया, जिस पर उन्होंने सफलतापूर्वक विजय प्राप्त की।
सांस्कृतिक और धार्मिक संरक्षण
मंदिर निर्माण: राजराजा प्रथम शैव धर्म के एक समर्पित अनुयायी और मंदिर निर्माण के उदार संरक्षक थे। उन्होंने तंजौर में भव्य राजराजेश्वर मंदिर (बृहदेश्वर मंदिर) का निर्माण पूरा किया, जो चोल वास्तुकला कौशल का एक प्रमाण है।
बौद्ध समर्थन: शैव धर्म के प्रति अपनी भक्ति के बावजूद, राजराजा प्रथम ने बौद्ध संस्थाओं को भी समर्थन दिया तथा नागपट्टिनम में एक बौद्ध मठ के निर्माण में योगदान दिया।
चोल साम्राज्य का विस्तार
राजराजा प्रथम के शासनकाल में अपने चरम पर, चोल साम्राज्य में तमिलनाडु के पांड्या, चेरा और तोंडईमंडलम क्षेत्र, साथ ही दक्कन में गंगावडी, नोलम्बापडी और तेलुगु चोडा क्षेत्र शामिल थे। साम्राज्य भारत से आगे श्रीलंका के उत्तरी भाग और मालदीव द्वीप समूह तक फैला हुआ था।
निष्कर्ष
राजराजा प्रथम का शासनकाल चोल राजवंश के लिए स्वर्णिम काल था, जिसमें सैन्य विजय, सांस्कृतिक उपलब्धियाँ और प्रशासनिक सुधार शामिल थे। उनकी विरासत को चोल इतिहास के शिखर के रूप में मनाया जाता है।