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राजेंद्र प्रथम (1012-1044 ई.): चोल शक्ति का चरमोत्कर्ष |
परिचय
राजराजा प्रथम के बेटे राजेंद्र प्रथम ने राजवंश की सैन्य विजय और विस्तार की परंपरा को जारी रखा। उनके शासनकाल ने दक्षिण भारत में चोलों की प्रमुख शक्ति के रूप में स्थिति को मजबूत किया।
सैन्य विजय
श्रीलंका विजय: राजेंद्र प्रथम ने महिंदा वी को हराकर श्रीलंका पर विजय प्राप्त की और द्वीप के दक्षिणी भाग पर कब्ज़ा कर लिया। इससे पूरे द्वीप पर चोल का नियंत्रण मजबूत हो गया।
अधिकार की पुनः स्थापना: उन्होंने चेर और पांड्य देशों पर चोल अधिकार की पुनः स्थापना की, तथा इस क्षेत्र में राजवंश का प्रभुत्व कायम रखा।
पश्चिमी चालुक्य संघर्ष: राजेंद्र प्रथम ने पश्चिमी चालुक्य राजा जयसिंह द्वितीय को हराया और तुंगभद्रा नदी को दोनों साम्राज्यों के बीच सीमा के रूप में स्थापित किया।
उत्तर भारतीय अभियान: राजेंद्र प्रथम का सबसे प्रसिद्ध सैन्य अभियान उत्तर भारत का उनका अभियान था। उन्होंने गंगा नदी को पार किया, बंगाल के महिपाल प्रथम को हराया और अपनी जीत की याद में गंगईकोंडचोलपुरम शहर की स्थापना की।
कदाराम अभियान: राजेंद्र प्रथम ने कदाराम (श्री विजया) तक एक नौसैनिक अभियान का नेतृत्व किया, जिससे दक्षिण-पूर्व एशिया में चोल प्रभाव का विस्तार हुआ।
विद्रोहों का दमन: अपने पूरे शासनकाल में, राजेंद्र प्रथम ने विद्रोहों को सफलतापूर्वक दबाया और चोल साम्राज्य की अखंडता को बनाए रखा।
सांस्कृतिक और धार्मिक संरक्षण
मंदिर निर्माण: राजेंद्र प्रथम, अपने पिता की तरह ही एक कट्टर शैव थे और उन्होंने मंदिर निर्माण का समर्थन किया। उन्होंने गंगईकोंडाचोलपुरम में राजेश्वरम मंदिर का निर्माण कराया और एक बड़ा सिंचाई तालाब खुदवाया।
धार्मिक सहिष्णुता: वे अपनी धार्मिक सहिष्णुता के लिए जाने जाते थे, उन्होंने वैष्णव और बौद्ध दोनों संप्रदायों को संरक्षण प्रदान किया था।
चोल साम्राज्य का पतन
राजेंद्र प्रथम की मृत्यु के बाद, चोल साम्राज्य धीरे-धीरे कमज़ोर होता गया। जबकि कुलोत्तुंग प्रथम और कुलोत्तुंग तृतीय जैसे शासकों ने राजवंश की शक्ति को बनाए रखने का प्रयास किया, आंतरिक चुनौतियों और बाहरी खतरों ने अंततः इसके पतन में योगदान दिया। कदवराय जैसे सामंतों के उदय और पांड्या राजवंश के पुनरुत्थान ने अंततः चोल साम्राज्य के पतन का कारण बना।
निष्कर्ष
राजेंद्र प्रथम का शासनकाल चोल शक्ति और प्रभाव के शिखर का प्रतिनिधित्व करता है। उनकी सैन्य विजय, प्रशासनिक सुधार और सांस्कृतिक संरक्षण ने दक्षिण भारत में चोलों की स्थिति को एक प्रमुख शक्ति के रूप में मजबूत किया। उनकी विरासत को चोल इतिहास में स्वर्ण युग के रूप में मनाया जाता है।