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हर्ष की सैन्य विजय |
हर्ष की सैन्य विजय
हर्ष के शासनकाल में महत्वपूर्ण सैन्य विजयें हुईं, जिससे उत्तर भारत में सबसे शक्तिशाली शासक के रूप में उनकी स्थिति मजबूत हुई।
कन्नौज पर विजय: अपने शुरुआती अभियान में हर्ष ने ससांका को कन्नौज से सफलतापूर्वक खदेड़ दिया और शहर को अपनी नई राजधानी बनाया। इस रणनीतिक कदम ने इस क्षेत्र पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया।
ध्रुवसेन द्वितीय पर विजय: हर्ष ने वल्लभी के शासक ध्रुवसेन द्वितीय का सामना किया और विजयी हुआ। ध्रुवसेन द्वितीय को हर्ष की अधीनता स्वीकार करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
पुलकेशिन द्वितीय के विरुद्ध अभियान: हर्ष का सबसे महत्वाकांक्षी सैन्य अभियान पश्चिमी चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय के विरुद्ध था। जबकि हर्ष का लक्ष्य नर्मदा नदी के दक्षिण में अपने राज्य का विस्तार करना था, चालुक्य शासक ने सफलतापूर्वक उसके आक्रमण को विफल कर दिया। पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल शिलालेख में इस जीत का स्मरण किया गया है, जिसके कारण उसे "परमेश्वर" की उपाधि मिली। ह्वेन त्सांग के विवरण भी पुलकेशिन द्वितीय की जीत की पुष्टि करते हैं।
सिंध के खिलाफ अभियान: हर्ष ने सिंध के स्वतंत्र राज्य के खिलाफ एक और अभियान शुरू किया। हालांकि इस अभियान का नतीजा अनिश्चित है, लेकिन यह संभावना नहीं है कि हर्ष ने इस क्षेत्र पर पूर्ण नियंत्रण हासिल कर लिया हो।
नेपाल और कश्मीर: नेपाल ने हर्ष की प्रभुता स्वीकार कर ली, जबकि कश्मीर के शासक ने उसे कर भेजा।
असम के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध: हर्ष ने असम के शासक भास्करवर्मन के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखे।
कलिंग विजय: हर्ष का अंतिम सैन्य अभियान उड़ीसा में कलिंग राज्य के विरुद्ध था, जिस पर उसने सफलतापूर्वक विजय प्राप्त की।
निष्कर्ष
अपनी सैन्य विजयों के माध्यम से, हर्ष ने आधुनिक राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार और उड़ीसा को शामिल करते हुए एक विशाल क्षेत्र पर अपना नियंत्रण स्थापित किया। उसका प्रभाव क्षेत्र और भी आगे तक फैल गया, जिसमें कश्मीर, सिंध, वल्लभी और कामरूप जैसे परिधीय राज्य उसकी संप्रभुता को स्वीकार करते थे। हर्ष की सैन्य शक्ति और कूटनीतिक कौशल ने उत्तर भारत में एक प्रमुख शक्ति के रूप में उसकी स्थिति को मजबूत किया।