गुप्त स्वर्ण युग: कला और वास्तुकला का उत्कर्ष

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गुप्त स्वर्ण युग: कला और वास्तुकला का उत्कर्ष


परिचय 

अपनी कलात्मक उपलब्धियों के लिए प्रसिद्ध गुप्त काल में नागर और द्रविड़ दोनों ही शैलियों की वास्तुकला और मूर्तिकला में महत्वपूर्ण प्रगति देखी गई। विदेशी आक्रमणों के कारण जहाँ कई कलाकृतियाँ नष्ट हो गईं, वहीं बचे हुए मंदिर, मूर्तियाँ और गुफा चित्र गुप्त कला की भव्यता की झलक प्रदान करते हैं।



गुप्त स्वर्ण युग: कला और वास्तुकला का उत्कर्ष

वास्तुकला

देवगढ़ मंदिर: झांसी के निकट देवगढ़ स्थित मंदिर गुप्तकालीन वास्तुकला का एक उल्लेखनीय उदाहरण है, जो विशिष्ट नागर शैली को दर्शाता है।


गढ़वास मूर्तियां: इलाहाबाद के पास गढ़वास के मंदिर में पाई गई मूर्तियां गुप्त कला का एक अन्य महत्वपूर्ण नमूना हैं।


पश्चिमी प्रभाव: यद्यपि गुप्त शैली मुख्यतः स्वदेशी परंपराओं से प्रभावित थी, फिर भी इसमें पश्चिमी प्रभाव के संकेत मिलते हैं, विशेष रूप से मथुरा में खड़ी बुद्ध की मूर्ति में, जो एक सूक्ष्म यूनानी शैली को प्रकट करती है।


सारनाथ बुद्ध: सारनाथ में उत्खनन से प्राप्त बुद्ध प्रतिमा गुप्त कला का एक अद्वितीय और उत्कृष्ट नमूना है, जो गुप्तकालीन मूर्तिकारों के कौशल और परिष्कार को प्रदर्शित करता है।


भितरी स्तंभ: स्कंदगुप्त का भितरी अखंड स्तंभ गुप्तकालीन वास्तुकला का एक और उल्लेखनीय उदाहरण है, जो इस अवधि के दौरान धातु शिल्पकला की निपुणता को प्रदर्शित करता है।



मूर्तिकला और धातुकर्म

धातुकर्म: गुप्तकालीन शिल्पकार धातु की मूर्तियाँ और स्तंभ बनाने की कला में पारंगत थे। बुद्ध की विशाल तांबे की मूर्ति, जो मूल रूप से सुल्तानगंज में मिली थी और अब बर्मिंघम संग्रहालय में रखी हुई है, उनके कौशल का प्रमाण है।


दिल्ली लौह स्तम्भ: गुप्त काल का दिल्ली लौह स्तम्भ, सदियों तक मौसम के प्रभाव में रहने के बावजूद जंग-मुक्त है, जो उस समय की उन्नत धातुकर्म तकनीकों को दर्शाता है।



चित्रकारी

बाघ गुफाएं: ग्वालियर के निकट स्थित बाघ गुफाओं में उत्कृष्ट भित्ति चित्र हैं, जो धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक विषयों सहित विभिन्न विषयों को दर्शाते हैं।


अजंता की गुफाएं: अपने जटिल भित्तिचित्रों के लिए प्रसिद्ध अजंता की गुफाएं मुख्य रूप से जातक कथाओं में वर्णित बुद्ध के जीवन को दर्शाती हैं।


सिगिरिया चित्रकला: श्रीलंका में सिगिरिया चित्रकला अजंता शैली से काफी प्रभावित थी, जो गुप्त कला के व्यापक प्रभाव को दर्शाती है।



न्यूमिज़माटिक्स

गुप्तकालीन सिक्के: गुप्त काल अपने उत्कृष्ट सिक्कों के लिए जाना जाता है। समुद्रगुप्त ने आठ अलग-अलग प्रकार के सोने के सिक्के जारी किए, जिनमें उनकी उपलब्धियों के बारे में बहुमूल्य जानकारी देने वाली किंवदंतियाँ हैं।


कलात्मक कौशल: गुप्त सिक्कों पर अंकित आकृतियाँ उस समय प्रचलित कलात्मक कौशल और शिल्प कौशल के उच्च स्तर को प्रदर्शित करती हैं।


विविधता: चन्द्रगुप्त द्वितीय और उसके उत्तराधिकारियों ने विभिन्न प्रकार के सोने, चांदी और तांबे के सिक्के भी जारी किए, जिससे गुप्त मुद्राशास्त्र की परिष्कृतता का और अधिक प्रदर्शन हुआ।



निष्कर्ष 

गुप्त काल भारतीय कला और वास्तुकला के लिए स्वर्ण युग था। स्मारकीय मूर्तियों से लेकर जटिल चित्रों और उत्कृष्ट सिक्कों तक, कला के बचे हुए कार्य गुप्त कारीगरों और कलाकारों की रचनात्मकता और कौशल का एक स्थायी प्रमाण प्रदान करते हैं।



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